Friday, July 11, 2014

इंतज़ार और सही - Rotimatic the Legendary (hoax) Rotimaker by Zimplistic

बड़ी ख़ुशी हुयी थी जान के की एक कंपनी जिपंलिस्टिक ने एक ऐसा रोटीमकेर लांच किया है जो भारतीय महिलाओ के लिए क्र।न्तिकारी साबित होगा । ये खबर सारे ऑनलाइन मीडिया में साल २०१२ में छायी हुयी थी । रोटीमेकर जिसका नाम रोटिमटिक है,  हर मिनट एक रोटी बना के निकालेगा । अगर केवल आटा और पानी दाल के मशीन का स्विच ओन करते ही हर मिनट गरमा गरम रोटी डाइनिंग टेबल पे मिलती रहे और उसके लिए किसी को कोई काम ना करना पड़े तो ऐसी मशीने कौन अपने घर नहीं लाना चाहेगा !

वेबसाइट दावा करती रही की मशीन नवंबर २०१२ में लांच हो रही है और मैंने लगभग तय कर लिया था की एक मशीन अपने लिए, एक अपने माँ के लिए खरीदनी ही है। मेरी राय में यह भारतीय महिलाओं के लिए उतना ही क्रन्तिकारी आविष्कार साबित होगा जितनी क्रन्तिकारी वाशिंग मशीन साबित हुयी है । महिलाएं जो घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं, उनके लिए यह मशीन बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है । रोटिमटिक के विज्ञापन दिखाते हैं की इसे चलना इतना आसान है की घर के पुरुष, जिनसे रोटी बनाना तो दूर आता गूंधने की उम्मीद भी बेईमानी है (घर के काम में सहयोग देने वाले पुरुष कृपया माफ़ करें और सहयोग ना देने वाले पुरुष कृपया सहयोग देने वाले पुरुषों से कुछ सीखें) वो भी इसे आराम से चला सकते हैं । 

बुजुर्ग दंपत्ति जो घर में अकेले रहते हैं और उनके पास काम करने के लिए कोई हेल्पर भी नहीं है, उनके लिए भी यह बहुत कारगर साबित हो सकती है । मैंने २०१२ में ही अपनी माँ को उम्मीदे दिल दी थी की मैं उन्हें जल्द ही एक  ऐसी मशीन गिफ्ट करुँगी जो गरमा गरम रोटी खिलायेगी । मैं बहुत दुखी हूँ की मैं अपने वादे को पूरा नहीं कर पायी हूँ अब तक । 

कंपनी दावा करती रही है की पहले बैच की टेस्टिंग हो गयी है और लोगों ने मशीन को बहुत पसंद किया है । समझ नहीं आता की ये लोग कौन हैं जिन्हे टेस्टिंग बैच वाली मशीने दी गयी थीं । ये बात संदेह पैदा करने वाली है की अब तक कंपनी सिवाय प्रमोशन वीडियो के और पेड एडवरटाइजिंग करवा के अपनी वेबसाइट सजाने के आलावा और कुछ ठोस कदम क्यों नहीं उठा पायी है । 

यदि कम्पनी की बातें और दावे केवल हवा नहीं हैं तो अब तक एक भी वीडियो या टेस्टिमोनी का उल्लेख जक्यो नहीं है जिसमे रैंडम लोग टेस्ट बैच का उपयोग करते और अपनी राय शेयर करते दिखाए गए हों!  कंपनी का फेसबुक पेज मेरे जैसे लोगों की निराशा दर्शाता है ।   दो साल से ऊपर का समय रोटीमाटिक जैसे प्रोडक्ट को टेस्टिंग फेज से बाहर आने के लिए काफी नहीं रहा है और अब कंपनी का कहना है की इस साल के अंत में यह रोटीमकेर लांच किया जायेगा । इतने डिले के बाद बहुत से लोगों को यह एक स्कैम से अधिक कुछ नहीं लग रहा । 

कंपनी जितनी एक्टिव और सीरियस मार्केटिंग को लेके है उतनी एक्टिव और सीरियस अपने प्रोडक्ट डेवेलपमेंट को लेके नहीं दिखती । उनका फेसबुक पेज भी सिर्फ उन हई लोगों को जवाब देता है जो "वाओ" और "जी हुजूरी" से भरपूर कमेंट्स करते हैं । साल २०१४ का सातवां महीना चल रहा है और कंपनी ने एक और वेबसाईट www.mashable.com पर अपना प्रचार करवाने में कामयाबी पायी है। बताते चलें की mashable एक बहुत ही पॉपुलर विदेशी वेबसाइट है । 

कई बार लगता है की ये इन्वेस्टर्स से पैसा ऐठने का एक बहुत बड़ा स्कैम है और ऐसे कोई  मशीन भारत में तो कई सालों तक आनी असंभव है । पर फिर भी एक हलकी सी उम्मीद है की शायद मैं अपनी बुजुर्ग माँ को जल्द ही ये मशीन गिफ्ट कर पाऊं और उन्हें किचेन में अधिक समय ना बिताना पड़े । 

इन्तजार और सही … 

Tuesday, May 13, 2014

जैसे उनके दिन बहुरे तैसे सबके बहुरें!

शुरू करने के लिए कई वाकये हैं जिन पर चर्चा की जा सकती है । पर ये निर्णय कर  पाना मुश्किल है कि ऐस कौन सा टॉपिक हो सकता है जो पहली पोस्ट का हकदार हो ! समस्या इतनी गहन भी नही इसलिए सोचा क्यों ना कुछ यूं ही लिखा जाय। 

बिना चुनावी चर्चा के ये ब्लॉग अधूरा रहेगा । हालाँकि मैं टी वी नहीं देखती, ईसलिए नही कि पसन्द नही है बल्कि इस लिये क्योंकि मेरे पास टी वी है नहीं ।  आप सोच सकते हैं कि बड़ी अजीब बात है आजकल तो हर घर मे टी वी है (बिलकुल उसी तरह जैसे घर घर मोदी है )। अखबार खरीदना पैसे की बर्बादी लगती है । बता देना उचित होगा कि मै भी उन लोगों मे से हुँ जो समझते हैं कि अखबार बिके हुये हैं (ये उन लोगों के लिये जो हर बात पे लोगोँ को जज करते हैं , मैने उनका काम आसान कर दिया ) तो वापस आते हैं इस बात पे कि मुझे कैसे पता चली घर घर मोदी होने कि बात ! हुआ यूं कि अब से कुछ साल एक पहले आस पास के लोगों को चुनावी चर्चा करते हुए सुना । दो महीने बीतते हवा ठंडी से गर्म होना शुरु हो गयी थी । हर जगह जीतने वाली पार्टी के पोस्टर छाने लगे थे । इतने बड़े पोस्टर जो पांच साल मे एक बार दीखते हैं । हाँ वही जिनके छोटे स्वरुप ट्रैन, बस, टैम्पो आदि पर भी मिलते हैं । अब हर जगह मुह भर भर के पोस्टर दिखाएंगे हमको तो हम कैसे ना जानेंगे कि मोदी घर घर हैं । 

पता नहीं क्यों पर दिमाग बहुत अजीब है। अनाप शनाप तुलनाएं करता है। जब छोटे थे तो हमारी नींद अक्सर गुसलखाने से आते कुछ इस तरह के नारों से टूटती थी - 'हर हर गंगे भागीरथी पाप ना राख्यौ एक्को रत्ती' । पता चल जाता था की घर का कोइ ना कोइ सदस्य स्नान कर रहा है । हर हर गंगे भागीरथी तो समझ आता था कि गंगा जी को याद किया जा रहा है पर 'हर हर मोदी घर घर मोदी' बिल्कुल नया नारा था । कमबख्त जिसने भी बनाया हो ये नारा पर एक बात तय है या तो हजरत बहुत बड़े तीस मार खां हैं या इर हमारी तरह कोई आम 'टाइम पास' आदमी। ये तो हद ही हो गयी गंगा मैया का सदियों पुराना नारा कोइ और हथिया ले गया ! ये बात दीगर है कि कुछ मैया भक्त मामले को दूर तक ले गये और हर हर मोदी नारा भूतकाल का भूत हो लिया । पर तब तक तीर कमान से निकल चुका था । हमारे जैसे पता नही कितने लोगों को पता चल चुका था कि मोदी घर घर हैं । 

टीवी पे तो अलग ही नारे बुलंद हैं । सुनते हैं इस बार की सरकार किसी पार्टी विषेश की नही है । अबकी बार मोदी सरकार है । कुछ क्रांतिकारी विचारधारा के लोग कह  कि अब सब खत्म हो जायेगा । हर तरह की सेंसरशिप आएगी । स्वतंत्र मीडिया और कलाकारों के लिए बुरा समय आने वाला है। और भी बहुत सी अजीब अजीब बातेँ सुन रही हूँ । थोड़ी कन्फ्यूज्ड हूँ - जब पता था तो रोक काहे नही लिया भईया !

 बचपन में हम सारी चचेरी ममेरे और सगी बहने इकटठे होतीं थीँ भैया दूज की पूजा के लिये । नानी , मामी और मम्मी मिलके ककुल पाँच कहानियां कहतीं थीं । उनमे से एक कहानी के पात्र पांच भाई और उनके एक लाड़ली बहन ' सताना ' होती थी । भाइयों का नाम कभी पता नहीं चला । मैंने पुछा था कई बार , हमेशा घर क़ी बडी औरतोँ ने य तो हॅंस केटाल दिया या डांट के चुप करा दिया । मुझे शक ही नही, पूरा यकींन है, उनमे से क़िसी को भी भाइयों के नाम पता नही होंगे । ऐसे ही अब मुझे भी नहीं पता । कल को मेरी बेटी पूछेगी तो मैं भी शायद उसे डांट के चुप करा दूँ । या फिर कोई इमेजिनरी नाम दे देना उचित होगा । बच्चे को डांट लगाने के पाप से बच जाउंगी । 

बताती चलूँ कि सताना एक लाड़ली बहन थी । पर जैसे ही भाइयों की शादियां हो गयीं, भाभियों ने उस पर जुल्मो की सारी हदें पार कर डाली । ना जाने भाइयों को कैसे पता नहीं चला । एक ही छत तले रहते हुए भी! पर जैसे हर रात कि सुबह होती है, सताना के कष्टों का अन्त हुआ। जो उत्तर भारत के निवासी हैं , शायद उन्होने भी ये कहानियाँसुनीं होँगी। सताना की कहानी के अन्त मे एकवाक्य कहना अनिवार्य था  - जैसे उनके दिन बहुरे तैसे सबके  बहुरें । तबसे जब भी कोई खबर सुनती हूँ, मैं तंज़ में , खुशी मे या चिड़ कर यही कहती हूँ - जैसे उनके दिन बहुरे तैसे सबके  बहुरें! सोलह तारीख अब बहुत दूर नहीं ।