शुरू करने के लिए कई वाकये हैं जिन पर चर्चा की जा सकती है । पर ये निर्णय कर पाना मुश्किल है कि ऐस कौन सा टॉपिक हो सकता है जो पहली पोस्ट का हकदार हो ! समस्या इतनी गहन भी नही इसलिए सोचा क्यों ना कुछ यूं ही लिखा जाय।
बिना चुनावी चर्चा के ये ब्लॉग अधूरा रहेगा । हालाँकि मैं टी वी नहीं देखती, ईसलिए नही कि पसन्द नही है बल्कि इस लिये क्योंकि मेरे पास टी वी है नहीं । आप सोच सकते हैं कि बड़ी अजीब बात है आजकल तो हर घर मे टी वी है (बिलकुल उसी तरह जैसे घर घर मोदी है )। अखबार खरीदना पैसे की बर्बादी लगती है । बता देना उचित होगा कि मै भी उन लोगों मे से हुँ जो समझते हैं कि अखबार बिके हुये हैं (ये उन लोगों के लिये जो हर बात पे लोगोँ को जज करते हैं , मैने उनका काम आसान कर दिया ) तो वापस आते हैं इस बात पे कि मुझे कैसे पता चली घर घर मोदी होने कि बात ! हुआ यूं कि अब से कुछ साल एक पहले आस पास के लोगों को चुनावी चर्चा करते हुए सुना । दो महीने बीतते हवा ठंडी से गर्म होना शुरु हो गयी थी । हर जगह जीतने वाली पार्टी के पोस्टर छाने लगे थे । इतने बड़े पोस्टर जो पांच साल मे एक बार दीखते हैं । हाँ वही जिनके छोटे स्वरुप ट्रैन, बस, टैम्पो आदि पर भी मिलते हैं । अब हर जगह मुह भर भर के पोस्टर दिखाएंगे हमको तो हम कैसे ना जानेंगे कि मोदी घर घर हैं ।
पता नहीं क्यों पर दिमाग बहुत अजीब है। अनाप शनाप तुलनाएं करता है। जब छोटे थे तो हमारी नींद अक्सर गुसलखाने से आते कुछ इस तरह के नारों से टूटती थी - 'हर हर गंगे भागीरथी पाप ना राख्यौ एक्को रत्ती' । पता चल जाता था की घर का कोइ ना कोइ सदस्य स्नान कर रहा है । हर हर गंगे भागीरथी तो समझ आता था कि गंगा जी को याद किया जा रहा है पर 'हर हर मोदी घर घर मोदी' बिल्कुल नया नारा था । कमबख्त जिसने भी बनाया हो ये नारा पर एक बात तय है या तो हजरत बहुत बड़े तीस मार खां हैं या इर हमारी तरह कोई आम 'टाइम पास' आदमी। ये तो हद ही हो गयी गंगा मैया का सदियों पुराना नारा कोइ और हथिया ले गया ! ये बात दीगर है कि कुछ मैया भक्त मामले को दूर तक ले गये और हर हर मोदी नारा भूतकाल का भूत हो लिया । पर तब तक तीर कमान से निकल चुका था । हमारे जैसे पता नही कितने लोगों को पता चल चुका था कि मोदी घर घर हैं ।
टीवी पे तो अलग ही नारे बुलंद हैं । सुनते हैं इस बार की सरकार किसी पार्टी विषेश की नही है । अबकी बार मोदी सरकार है । कुछ क्रांतिकारी विचारधारा के लोग कह कि अब सब खत्म हो जायेगा । हर तरह की सेंसरशिप आएगी । स्वतंत्र मीडिया और कलाकारों के लिए बुरा समय आने वाला है। और भी बहुत सी अजीब अजीब बातेँ सुन रही हूँ । थोड़ी कन्फ्यूज्ड हूँ - जब पता था तो रोक काहे नही लिया भईया !
बचपन में हम सारी चचेरी ममेरे और सगी बहने इकटठे होतीं थीँ भैया दूज की पूजा के लिये । नानी , मामी और मम्मी मिलके ककुल पाँच कहानियां कहतीं थीं । उनमे से एक कहानी के पात्र पांच भाई और उनके एक लाड़ली बहन ' सताना ' होती थी । भाइयों का नाम कभी पता नहीं चला । मैंने पुछा था कई बार , हमेशा घर क़ी बडी औरतोँ ने य तो हॅंस केटाल दिया या डांट के चुप करा दिया । मुझे शक ही नही, पूरा यकींन है, उनमे से क़िसी को भी भाइयों के नाम पता नही होंगे । ऐसे ही अब मुझे भी नहीं पता । कल को मेरी बेटी पूछेगी तो मैं भी शायद उसे डांट के चुप करा दूँ । या फिर कोई इमेजिनरी नाम दे देना उचित होगा । बच्चे को डांट लगाने के पाप से बच जाउंगी ।
बताती चलूँ कि सताना एक लाड़ली बहन थी । पर जैसे ही भाइयों की शादियां हो गयीं, भाभियों ने उस पर जुल्मो की सारी हदें पार कर डाली । ना जाने भाइयों को कैसे पता नहीं चला । एक ही छत तले रहते हुए भी! पर जैसे हर रात कि सुबह होती है, सताना के कष्टों का अन्त हुआ। जो उत्तर भारत के निवासी हैं , शायद उन्होने भी ये कहानियाँसुनीं होँगी। सताना की कहानी के अन्त मे एकवाक्य कहना अनिवार्य था - जैसे उनके दिन बहुरे तैसे सबके बहुरें । तबसे जब भी कोई खबर सुनती हूँ, मैं तंज़ में , खुशी मे या चिड़ कर यही कहती हूँ - जैसे उनके दिन बहुरे तैसे सबके बहुरें! सोलह तारीख अब बहुत दूर नहीं ।